यह कहानी है एक लालची कौए की और इस कहानी का नाम है “लालची कौआ | Greedy Cow Story in Hindi’ उम्मीद है आपको कहानी जरूर पसंद आएगी।
लालची कौआ
Greedy Cow Story in Hindi
बहुत समय पहले की बात है, मयूरपटनम के लोगों ने गर्मी के महीने में अपने घर में तथा सड़कों पर खपच्ची की टोकरी लटका दी थी। उसमें उन्होंने अनाज के दाने तथा पानी का कटोरा रखा था जिससे पक्षी आकर उन्हें खा सकें।
एक लखपति व्यक्ति के घर खाना बनाने वाले रसोइए ने भी अपनी रसोई में एक भद्र कबूतर आकर रहने लगा था। प्रतिदिन सुबह वह उड़कर चला जाता और दो पहर में वापस लौटा करता था।
एक दिन रसोई में मछली पक रही थी। ऊपर से उड़कर चला जाता हुआ कौआ मछली की सुगंध से आकृष्ट हो गया। उसके मन में मछली खाने की तेज इच्छा हुई। वहीं पास में वह बैठ गया। शाम के समय उसने कबूतर को रसोई में जाते हुए देखा। उसने सोचा कबूतर के सहारे वह रसोई में जाएगा और उसे मछली खाने को मिलेगी। अगली सुबह जब कबूतर उड़कर रसोई से बाहर से बाहर निकला तब कौए ने उसका पीछा किया। कबूतर ने कहा, “कौए भाई, तुम मेरे पीछे क्यों आ रहे हो?”
कौआ बोला, “उस्ताद, मुझे तुम्हारा रहन-सहन बहुत पसंद आया है। मैं तुम्हारी सेवा में जीवन यापन करना चाहता हूँ।”
कबूतर ने उत्तर दिया, “कौए भाई. हमारा चुग्गा (भोजन) अलग-अलग है। मेरी सेवा करने में तुम्हें बहुत कठिनाई होगी।”
कौए ने ज़िद करी, “उस्ताद, मैं तुम्हारे साथ ही भोजन करूँगा और जब तुम लौटोगे तभी लौटूँगा।
कबूतर ने कौए को नसीहत देते हुए कहा, “ठीक है तुम सतर्क रहना।”
कबूतर ने अनाज के दाने और बीज चुगे जबकि कौए ने पास पड़े गोबर में से कीड़े चुनकर खाए। वापस कबूतर के पास आकर उसने कहा, “उस्ताद, तुम चुगने में बहुत समय लगाते हो। तुम्हे कम खाना चाहिए।”
शाम ढलने पर वह कबूतर के साथ ही रसोई में लौट आया। रसोइए ने देखा की उसके पालतू कबूतर के साथ एक दूसरा पक्षी भी आया है तो उसने एक दूसरी खपच्ची की टोकरी टांग दी। इस प्रकार दोनों पक्षी साथ-साथ रहने लगे।
एक दिन लखपति दावत के लिए ढेर सारी मछलियाँ लेकर आया। रसोइए ने उन्हें रसोई में लटका दिया। मछली देखकर कौए के मुँह में पानी आ गया। उस दिन उसने बाहर नहीं जाने का निर्णय किया जिससे वह मछली खा सके। पूरी रात उसने बेसब्री से काटी। सुबह बाहर जाने के लिए तैयार होकर कबूतर ने कौए से कहा, “कौए भाई, चलो चलें।”
कौए ने कहा, “उस्ताद, आज तुम अकेले ही चले जाओ। मेरे पेट में दर्द है।”
कबूतर ने कहा, “कौए भाई, आज से पहले कभी भी कौए को पेट दर्द होता नहीं सुना है। हो न हो तुम भूख से संतप्त हो। कहीं तुम मछली खाने की योजना तो नहीं बना रहे हो? आओ, मनुष्य का भोजन तुम्हे करना सही नहीं है। ऐसा मत करो। चलो मेरे साथ चुगने।”
कौए ने अड़े रहकर कहा, “उस्ताद, मैं नहीं आ सकता।”
“ठीक है, तो तुम मेरी बात नहीं मानोगे…सचेत रहना, इसमें तुम्हारा ही नुकसान है…” ऐसा कहकर कबूतर उड़ गया।
उस दिन रसोइए ने मछली के कई व्यंजन बनाए। भाप बाहर निकलने के लिए बर्तन के ऊपर का ढक्कन खोलकर, कलछी उसमें रखकर वह रसोई के बाहर खड़ा होकर अपना पसीना पोंछने लगा।
कौए ने रसोइए को रसोई से बाहर देखकर सोचा, “जी भरकर मछली खाने का यही उपयुक्त समय है। अपनी इच्छानुसार मैं छोटे टुकड़े खाऊँ या बड़े टुकड़े खाऊँ। एक बड़ा मछली का टुकड़ा मैं अपनी टोकरी में लेकर जाऊँगा जहाँ मैं बैठकर आराम से उसे खाऊँगा।”
ऐसा सोचकर कौआ अपनी टोकरी से उड़कर निचे आया और कलछी पर बैठ गया। कलछी हिली और उससे खनखनाहट हुई। आवाज सुनकर रसोइया सावधान होकर भीतर आया। कौए को देखकर उसने सोचा, “अच्छा तो यह कौआ मेरे मालिक के दावत के लिए पकने वाली मछली को खाना चाहता है। मैं उसे सबक सिखाऊँगा।”
उसने रसोई के सभी दरवाजे बंद कर दिए और कौए को पकड़ लिया। उसने कौए के पंख पकड़कर उस पर नमक, कालीमिर्च, अदरक और जीरा लगाकर उसे छाछ में डुबो दिया। उसके बाद रसोइए ने कौए को उसकी टोकरी में फेंक दिया। कौआ वहां पड़ा दर्द से कराहता रहा। शाम को कबूतर ने वापस आने पर कौए को अत्यंत दयनीय अवस्था में पाया। कबूतर ने कहा, “हे लालची कौए! तुमने मेरी सलाह पर ध्यान नहीं दिया। अब तुम अपनी लालच का फल भुगतो।”
शिक्षा: लालच का अंत कभी अच्छा नहीं होता है।
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