लालच का फल, Lalach Ka Fal Moral Story in Hindi
Lalach Ka Fal Moral Story in Hindi
एक बार की बात है एक गांव में हरि नारायण नाम का एक व्यक्ति रहता था। वह स्वभाव से बहुत शांत और सीधा साधा था। वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रामपुर गांव में रहता था। उसकी गांव में एक मिठाई की दुकान थी और वह चार गाय पालता था। वह अपना काम काफी ईमानदारी से करता था। लेकिन गांव में कई दुकाने होने के कारण उसका सामान कम बिकता था। लेकिन गांव वाले उसकी मिठाई ज्यादा पसंद करते थे। क्यूंकि वह बिलकुल शुद्ध मिठाई बनाता था। इसलिए उसकी दुकान पर भीड़ फिर भी ठीक-ठाक रहती थी। उसकी आमदनी भी ठीक-ठाक हो जाती थी।
वह अपने गायों से बहुत प्यार करता था। और उनको भरपेट भोजन भी कराता था। लेकिन हरीनारायण की पत्नी हमेशा दुखी रहती थी। क्यूंकि हरिनारायण काफी ईमानदार व्यक्ति था और उसकी पत्नी बिलकुल उससे बिपरीत थी। उसकी पत्नी हरिनारायण को हमेशा धिक्कारती रहती थी की वह कुछ पैसे ज्यादा महंगी मिठाई बेचकर बना लिया करें। लेकिन हरिनारायण अपना काम ईमानदारी से करता था।
हरिनारायण सभी लोगों से बिलकुल अलग था। वह अपना काम पूरी ईमानदारी से करता था। वह अपने गांव का भी ख्याल रखता था। एक दिन वह रोज-रोज की धिक्कारिया से तंग हो गया। अगले दिन, हरिनारायण ने अपने दूध में पानी मिलाकर मिठाई बनाई और उस मिठाई को ज्यादा दामों में बेचने लगा। गांव वालो ने मिठाई तो खरीदी लेकिन ज्यादा पैसे देने पर उन्होंने हरिनारायण को खरी-खोटी भी सुनाई।
ज्यादा पैसे आने पर हरिनारायण ने सोचा, “आज अपनी पत्नी के लिए मुनाफे के पैसे से थोड़ा सामान खरीद कर ले जाता हूँ। वह खुश हो जाएगी और हो सकता है की आज के बाद मुझे खरी-खोटी भी न सुनाए। हरिनारायण अपने घर पहुँचा और उसने मुनाफे का सामान अपनी पत्नी को दिया। उसकी पत्नी काफी खुश हुई। पत्नी ने हरिनारायण से कहा, “आगे से आप ऐसा ही करिएगा, ज्यादा पैसे आएंगे तो हम जल्दी ही अमीर हो जाएंगे।”
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हरिनारायण अपनी पत्नी के दवाब में आकर वैसा ही करने लगा। धीरे-धीरे उस गांव के लोग उससे नाराज होने लगे और उसकी दुकान पर बहुत कम लोग आने लगे जिससे उसके सामान की बिक्री भी कम पड़ने लगी और अब मुनाफा पहले से भी कम होने लगा। यह सब देख हरिनारायण बहुत पछता रहा था और वह अपने गायों को भी सही से नहीं खिला पाता था।
यह सब देखकर हरिनारायण काफी दुखी हो गया। लेकिन उसकी पत्नी उसको अभी भी काफी धिक्कारती थी। बाद में हरिनारायण ने उसे समझाया की बेईमानी का पैसा ज्यादा दिन नहीं टिकता। कुछ दिन तक ऐसा ही चलता रहा। लेकिन हरिनारायण की दुकान पर अब ग्राहक आना बिलकुल बंध हो गए। हरिनारायण अब काफी गरीब हो गया और उसे खाने के भी लाले पड़ने लगे।
जब उसकी पत्नी काफी कमजोर और गरीब हो गई तब उसको समझ में आया की उसका पति ईमानदारी से जो काम करता था, उसमे ज्यादा ख़ुशी होती थी। वह अब अपनी गलती पर पछता रही थी। अगले दिन हरिनारायण की पत्नी ने अपने पति से माफ़ी मांगी ,उसने कहा, “आगे से ऐसा मैं कुछ भी नहीं कहूँगी और फिर दोनों भगवान के मंदिर गए। और भगवान से अपने पापों की क्षमा मांगी।
हरिनारायण ने भगवान से कहा, “हे प्रभु! अब मैं अपना काम पुरे ईमानदारी से करूँगा और कोई किसी प्रकार की मिलावट या महंगा सामान नहीं बेचूंगा। मुझे माफ़ कर दीजिए प्रभु।”
उन दोनों को अपने गलती का एहसास हो गया था। अगले दिन हरिनारायण ने भगवान का नाम लेकर दुकान खोली। उस दिन काफी कम गांव वाले मिठाई खरीदने आए लेकिन पुराने भाव देखकर गांव वाले काफी खुश हुए। धीरे-धीरे हरिनारायण की दुकान पर पुराने ग्राहक भी आने लगे और धीरे-धीरे हरिनारायण की जिंन्दगी पटरी पर लौट आई। अब उसकी पत्नी भी अपने पति से कोई सामान नहीं माँगती थी।
वह लोग अब थोड़े सामान में खुश रहने लगी। और पैसो की भी बचत करने लगी। हरिनारायण अपने बच्चे और पत्नी के साथ खुश रहने लगे और उसकी गाय भी पहले की तरह ही दूध देने लगी। अब उसका परिवार पहले की तरह खुशनसीब हो गया।
शिक्षा: अधिक लालच का फल ज्यादा दिन तक नहीं टिकता, ईमानदारी का फल काफी दिन तक टिकता है।
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