इस कहानी का नाम है “अमूल्य जादुई मंत्र | Hindi Story Of Priceless Magical Spells” उम्मीद है आपको यह कहानी पसंद आएगी।
अमूल्य जादुई मंत्र
Hindi Story Of Priceless Magical Spells
एक समय की बात है, बहिष्कृत बस्ती में एक अति बुद्धिमान और ज्ञानी शिक्षक रहता था। वह जादुई मन्त्रों के दुयारा बिना मौसम के भी फल पैदा कर सकता था। यदि किसी आम के पेड़ के किनारे खड़े होकर, हाथ में जल लेकर, जादुई मन्त्रों का उच्चारण करे, जड़ों पर जल छिड़कता तो आम के पुराने पत्ते झड़कर नए पत्ते आ जाते। पेड़ पर फूल और फल लगकर पककर आम निचे गिरते मानो दैवीय फल हों। वह शिक्षक उन्हें उठाकर घर लाता और फिर उन्हें बेचकर अपनी गृहस्ती चलाता।
एक बार एक पुजारी के पुत्र ने उन्हें बिना मौसम का आम बेचते देखा। उसने सोचा, “कैसे यह व्यक्ति इस मौसम में आम बेच रहा है? अवश्य ही इसने जादु के मंत्रों से इन आमों को प्राप्त किया होगा। मुझे यह अमूल्य जादू के मंत्र इससे अवश्य सीखना चाहिए।”
एक दिन जब वह शिक्षक वन की और गया हुआ था तब पुजारी के पुत्र ने उसके घर के दरवाजे पर जाकर उसकी पत्नी से पूछा, “हे माता! मैं आपके पति से मिलने आया हूँ। क्या वे घर पर हैं?”
पत्नी ने कहा, “नहीं पुत्र, वह वन की ओर गए हैं।”
पुजारी के पुत्र ने वहीँ बैठकर उनके आने की प्रतीक्षा करी। शिक्षक के वापस लौटने पर उनकी पत्नी ने उन्हें पुजारी के पुत्र के बिषय में बताया। शिक्षक ने पत्नी से कहा, “प्रिय, यह युवक यहाँ जादू के मंत्र लेने आया है पर यह धूर्त है। जादुई मंत्रो को यह संभाल नहीं पाएगा।”
पत्नी ने उनसे पुनर्विचार कर उसे अपना शिष्य स्वीकारने का अनुरोध किया। शिक्षक पत्नी की बात मान गया। पुजारी के पुत्र ने शिक्षक के साथ रहकर उनकी सेवा करना प्रारम्भ कर दिया। वह जंगल से लकड़ियाँ लाता, चावल कूटता, खाना पकाता। पानी लाता तथा और भी घर के सारे काम किया करता था।
एक दिन शिक्षक की पत्नी से शिक्षक से कहा, “प्रभु! यह पुजारी का पुत्र होकर भी हमारी सेवा कर रहा है यदि न भी संभाल पाए तो भी आप कृपया इसे जादू के मंत्र सीखा दें।”
शिक्षक ने पत्नी की बात मानकर युवक को बुलाया। जादू के मंत्र पुजारी के पुत्र को सिखाकर उससे कहा, “पुत्र, ये जादू के मंत्र अमूल्य हैं। इससे तुम्हे बहुत लाभ होगा। यदि कोई भी तुमसे शिक्षक का नाम पूछे तो तुम यह अवश्य बताना की तुमने इसे एक बहिष्कृत से सीखा है। यदि तुम शर्म के मारे कुछ भी और नाम बताओगे तो जादू के मंत्रों की शक्ति समाप्त हो जाएगी।”
पुजारी के पुत्र ने कहा, “यदि कोई मुझसे पूछेगा तो मैं आपका ही नाम बताऊँगा। भला, मैं क्यों यह छुपाने लगा की मैंने यह विद्या आपसे सीखी है?”
जादू के मंत्र प्राप्त कर, अपने अपने शिक्षक को नमन कर उनसे जाने की अनुमति ली। शहर जाकर उसने जादू से उगाए आमों को उसने बेचना प्रारम्भ कर दिया।
एक बार एक माली ने उससे एक आम ख़रीदा और उस आम को राजा को भेंट कर दिया। राजा ने आम खा कर पूछा, “तुम्हे इतना स्वादिष्ट फल कहाँ से मिला?”
माली ने उत्तर दिया, “महाराज! एक आदमी है जो बिना मौसम के भी आम बेचता है। मैंने यह आम उसी से ख़रीदा है।”
राजा ने कहा, “उससे कहो कि आज के बाद से सभी आम वह मुझे लाकर देगा।”
माली ने राजा की आज्ञा पुजारी के पुत्र तक पहुँचा दी। उसने अपना सारा आम राजा के महल में पहुँचाना शुरू कर दिया। इस प्रकार से उसकी अच्छी कमाई होने लगी।
एक दिन राजा ने उसे अपने महल में बुलाकर पूछा, “इतने स्वादिष्ट आम तुम्हे कहाँ से मिलते हैं?”
पुजारी के पुत्र ने कहा, “महाराज, मेरे पास अमूल्य जादू के मंत्र हैं। मुझे आम उसी से प्राप्त होते हैं।”
राजा जिज्ञासु हो उठा और बोला, “मैं तुम्हे जादू करते हुए देखना चाहता हूँ।”
पुजारी के पुत्र ने कहा, “महाराज! मैं आपको अवश्य दिखाऊँगा।”
अगले दिन पुजारी के पुत्र के साथ राजा जंगल में गया। पुजारी का पुत्र एक आम के पेड़ के पास खड़ा हो गया। उसने अपने जादुई मंत्र पढ़े और हाथ का जल जड़ पर छिड़का। पलक झपकते ही पेड़ से पुराने पत्ते गिर गए और नए पत्ते आ गए। फूल लगे, आम में बदले और फिर पेड़ से पके आमों की बरसात हुई। राजा ने आम का स्वाद लिया और ढेरों धन तथा उपहार पुजारी के पुत्र को दिया। राजा ने उससे पूछा, “नवयुवक, किसने तुम्हे यह अद्भुत जादुई मंत्र सिखलाया है?”
पुजारी के पुत्र ने सोचा, “बहिष्कृत शिक्षक का नाम लेना मेरे लिए शर्म की बात होगी। लोग मुझे अपराधी समझेंगे तथा बातें बनाएंगे की पुजारी के पुत्र ने एक बहिष्कृत से शिक्षा ली। अब मुझे जादुई मंत्र तो आ ही गए हैं किसी नामी शिक्षक का नाम ले लेता हूँ।”
यह सोचकर उसने कहा, “महाराज, मैंने यह विद्या तक्षशिला के एक उच्च कुल के श्रेष्ठ शिक्षक से ग्रहण की है। पुजारी के पुत्र के इस झूट को कहते हुए जादुई मंत्र का प्रभाव समाप्त हो गया। अगले दिन फिर राजा को आम खाने की इच्छा हुई। पुजारी के पुत्र को बुलाकर उसने कहा, “नवयुवक मेरे लिए आम लेकर आओ।”
पुजारी के पुत्र चाहकर भी आम न ला सका। राजा ने उससे पूछा, “नवयुवक, तुम्हारे जादू को क्या हुआ?’
पुजारी के पुत्र ने कहा, “महाराज, अभी ग्रहों की स्तिथि अनुकूल नहीं हैं। मैं स्तिथि अनुकूल होने पर अवश्य आम लाऊँगा।”
राजा ने क्रुद्ध होते हुए कहा, “आम के लिए मना करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? तुमने पहले तो कभी ग्रहों के अनुकूल स्तिथि की बात नहीं की?”
पुजारी के पुत्र ने सोचा की यदि उसने झूट कहा तो राजा उसे कठोर दण्ड देंगे। उसने सच बोलने का निर्णय किया और बोला, “हे महाराज! मुझे क्षमा कर दें। मैंने आपसे अपने शिक्षक के बारे में झूट कहा था।”
वास्तव में मैंने यह जादुई मंत्र एक बहिस्कृत से सीखा था। आपसे उस शिक्षक का नाम छिपकर मैंने उन्हें धोखा दिया। मैंने अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ा है। इसी कारन यह जादुई मंत्र मुझे छोड़ गए हैं और मैं आपके लिए आम लाने में असफल रहा।
राजा ने कहा, “तुमने झूट बोलने का पाप किया है। जिसके पास ज्ञान होता है वही श्रेष्ठ होता है। अपने शिक्षक के पास वापस जाओ और उन्हें प्रसन्न करने की चेष्टा करो। यदि जादुई मंत्र न मिले तो दोबारा इधर आने की हिम्मत भी मत करना।”
राजा ने उसे देश से निकाल दिया। हताशा की स्तिथि में वह फिर से बहिष्कृत बस्ती में गया। वापस आता देखकर शिक्षक ने अपनी पत्नी से कहा, “प्रिय, देखो, मेरा शिष्य अपने जादुई मंत्र को खोकर वापस इधर आ रहा है।”
पुजारी के पुत्र ने अपने शिक्षक को नमन कर अपनी भूल को स्वीकार किया। उसने रोते हुए अपने शिक्षक से अनुरोध किया, “आदरणीय गुरुदेव, मुझपर दया कीजिए। फिर से मुझे जादुई मंत्र दे दीजिए।”
शिक्षक ने कहा, “मैंने शुरू में ही तुम्हे सावधान कर दिया था। अब क्यों मेरे पास आए हो?” जो मुर्ख बेवकूफ, कृतघ्न झूठा और असंयत होता है उसे हम जादुई मंत्र नहीं देते है। जाओ, चले जाओ यहाँ से।”
अपने शिक्षक से ऐसी फटकार सुनकर पुजारी के पुत्र का दिल टूट गया। उसके जीने की इच्छा का अंत हो गया। इसलिए वह जंगल में जाकर असामायिक मृत्यु का ग्रास बन गया।”
शिक्षा: जिसके पास ज्ञान होता है वही श्रेष्ठ होता है।
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