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मेहनत का फल | Mehnat Ka Fal Story in Hindi

मेहनत का फल | Mehnat Ka Fal Hindi Story

Posted on August 14, 2020

मेहनत का फल  Mehnat Ka Fal Hindi Story

 

मेहनत का फल

नकुल और बकुल दोनों ही बहुत अच्छे मित्र थे। गांव में उनकी दोस्ती को देखकर सभी खुश हो जाते थे। नकुल बहुत आस्तिक था। और बकुल बहुत ही परिश्रमी था। उन दोनों ने मिलकर एक बीघा जमीन खरीद ली। उनका उद्देश्य था खेती करके अमीर होना।
बकुल ने कहा,
“देखो, देखो भाई नकुल, अगर हम सही से परिश्रम कर सके तो हमारी फसल बहुत ही अच्छी उगेगी समझे।”
नकुल कहता है,
“अगर ऊपर वाले की इच्छा हुई तो जरूर कर पाएंगे।”
दोनों ने अपने अपने विचार बताए।



बकुल बहुत परिश्रम करने लगा। मिटटी खोदना, घास साफ करना, बीज डालना। और नकुल सिर्फ अपने लिए आशीर्वाद मांगता रहा।
उसने सोचा,
“इंसान जो कुछ भी करता है न वह सब ऊपर वाला करता है। उसी के कार्य से तो सारे कार्य सफल होते है।
धीरे-धीरे दिन बीतने लगे। महीने बीतने लगे। खेतों में चारों तरफ हरियाली छा गए।
बकुल ने कहा,
“देखा नकुल, कितनी अच्छी फसल खिली है।”
नकुल ने कहा,
“हाँ यह सब को उपर वाले का आशीर्वाद है। मैं तो रोज उपर वाले को याद करता हूँ। रोज।”
बकुल ने कुछ भी नहीं कहा। वह सिर्फ मन लगाकर अपना काम करने लगा। और कुछ दिन बाद फसल उग आई। जमीन सुनहरे फसल से भर गई। नकुल और बकुल बहुत खुश हुए।
 नकुल ने आसमान की तरफ हाथ जोड़कर प्रणाम करके कहा,
“हे उपरवाले, आपके आशीर्वाद से यह सब सम्भब हुआ। यह सब आपके आशीर्वाद का ही तो फल है। क्यों मित्र कहा था न उपरवाले की आशीर्वाद के बिना एक पत्ता भी नहीं गिरता।
अब फसल बेचने का समय आ गया। फसल बेचकर बहुत लाभ हुआ। पर अब शुरू हुआ समस्या पैसे के बटवारे को लेकर।
नकुल ने कहा,
“भाई बकुल, उपरवाले की इच्छा से ही इतना लाभ हुआ है हूमें। क्यों न अब हम लाभ का बटवारा करले। क्या कहते हो?”
बकुल ने कहा,
“देखो भाई, इस जमीन पर बीज बोने से ले करके फसल काटने तक मैंने परिश्रम किया है। तो परिश्रम का भी तो कुछ मूल्य होना चाहिए। तो फिर लाभ में से ज्यादा हिस्सा मिलना मुझे उचित है। चाहे तुम कुछ भी कहो भाई लेकिन लाभ का ज्यादा हिस्सा मुझे मिलना चाहिए।”
नकुल ने कहा,
“पर हमने जो उपरवाले से आशीर्वाद माँगा था उनके आशीर्वाद के बिना क्या यह फसल होती बोलो? इसलिए ज्यादा मुझे मिलना चाहिए। समझे तुम।”
दोनों में धीरे-धीरे बहस होने लगी। पहली बार फसल की बात को लेकर दोनों में झगड़ा और विवाद शुरू हो गया। दोनों ही गांव के मुखिया के पास गए।
मुखिया जी ने सब कुछ सुनकर कहा,
“सुनो सुनो तुम दोनों को मैं एक काम दूंगा, तुम दोनों में से जो इस कठिन कार्य को कर लेगा वही लाभ का ज्यादा हिस्सा पाएगा। बोलो क्या तुम्हे मेरा यह न्याय मंजूर है? क्या तुम दोनों तैयार हो?”
दोनों ने एक साथ कहा,
“हाँ मुखिया जी हम तैयार है।”
फिर मुखिया जी उन दोनों को दो बोरिया देकर कहा,
‘इन बोरियों में कंकर मिलाया हुआ चावल है। कल सुबह तक चावल अलग और कंकर अलग करके लाना होगा। मैं तुम दोनों का काम देखकर विचार करूँगा ठीक है।”
नकुल और बकुल दोनों बोरिया उठाकर ले जाते है। नकुल बोरि को मंदिर में उठाकर रख देता है। वह मन ही मन सोचता है,
“हे उपरवाले आपका आशीर्वाद रहा तो जरूर सब कुछ सम्भब होगा। यह फिरसे साबित हो जाएगा। हे उपरवाले, हे उपरवाले।
उधर बकुल रात को दिया जलाकर चावल और कंकर अलग करने लगा। नकुल उपरवाले के लिए बोरी रखकर सो जाता है।
 जैसे सुबह हुई बकुल ने बोरी के चावल में कंकर जितना चुन पाया अलग-अलग करके मुखिया जी के पास ले आया।
बकुल ने कहा,
“हुजूर, पूरा सम्भब तो नहीं हो पाया, कुछ बाकि है।”
फिर मुखिया जी उसकी बात सुनकर मुस्कुराए और कहा,
“अब नकुल ने क्या किया यह भी तो देखु जरा उसके बाद विचार करूँगा।”
उधर नकुल उपरवाले पर भरोसा करके नींद से उठकर मंदिर से बोरी लेकर मुखिया जी के पास गया।
मुझिया जी ने पूछा,
‘तुम क्या पूरी बोरी के चावल चुनकर लाए हो?”
नकुल ने हाथ जोड़कर कहा,
“नहीं मुखिया जी। मैंने सारा काम उपरवाले के हाथ में छोड़ दिया था। देखिए मुखिया जी उनका आशीर्वाद मुझे जरूर प्राप्त होगा। देख लीजिएगा।”
नकुल का उत्तर सुनकर मुखिया जी ने कहा,
“अच्छा तो तुमने अपने दोनों हाथो का इस्तिमाल नहीं किया और उपरवाले उपर निर्भर रहे। तो फिर मैं देखूं जरा की तुम्हारे उपरवाले ने सही से काम किया है या फिर नहीं किया है। खोलो खोलो बोरी को खोलो।”
नकुल ने बोरी खोली। उसमे जैसे कंकर भरे हुए थे ठीक वैसे ही अभी भी है।
फिर मुखिया जी ने हँसकर कहा,
“उपरवाले ने सबको दो हाथ दिए है काम करने के लिए। वह उन्हें ही आशिर्बाद देते है जो परिश्रम करते है। समझे नकुल। इसलिए बकुल के परिश्रम से ही यह फसल हुई है। तुमने कोई परिश्रम नहीं किया है। इसलिए लाभ का ज्यादा हिस्सा बकुल को ही मिलेगा।”
नकुल सब समझ गया की उससे क्या भूल हुई है।
मुखिया जी ने फिर उससे कहा,
“नकुल अगर तुम बकुल के साथ हाथ मिलाकर काम करते तो फिर तुम्हारी फसल और ज्यादा अच्छी होती। और ज्यादा उपार्जन कर पाते।”
उसके बाद, नकुल और बकुल अपने जमीन में परिश्रम करने लगे। उस बर्ष और ज्यादा फसल हुई। और बहुत ज्यादा लाभ हुआ। और फिर कभी भी उन दोनों के बीच बटवारे को लेकर विवाद नहीं हुआ।
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