Hindi Story of Four Brahmins and Lion
चार ब्राह्मण और शेर
एक गांव में चार ब्राह्मण रहते थे। उनमे से तीन ब्राह्मणो ने अनोखी बिद्याए सिख रखी थी जबकि एक को कुछ खास नहीं पता था। इसलिए बाकि तीन ब्राह्मण उसे अज्ञानी और मुर्ख समझते थे।
एक बार तीन बिद्वान ब्राह्मणों ने शहर जाकर कुछ धन उपार्जन करने का विचार बनाया। उन्हें जाता देखकर चौथा ब्राह्मण भी उनके साथ जाने का आग्रह करने लगा।
तीनों ब्राह्मण ने उसे लगभग डाटते हुए कहा,
“तुम हम बिद्वानो के साथ जाकर क्या करोगे। तुम्हे तो कोई ऐसी बिद्या भी नहीं आती जिससे तुम धन उपार्जन कर सको। जाओ लौट जाओ।
चौथे ब्राह्मण आग्रह करते हुए बोला,
“मैं तुम लोगों के काम कर दिया करूँगा। कृपया मुझे ले चलो।”
काम कराने की लालच में सारे उसकी बात मान गए और वह भी साथ साथ चल पड़ा। शहर जाते वक़्त रास्ते में एक घना जंगल पड़ा। चलते-चलते उन्हें एक जगह बहुत सारी हड्डिया बिखरे दिखाई पड़ती। सभी वही रुक जाते है। और इस बात को लेकर विवाद हो जाता है की यह हड्डिया किस जानबर की है?
तभी एक ब्राह्मण बोलता है,
“चलो बेकार की बेहेस बंध करो। मैं अभी अपने तंत्र विद्या से इन हड्डियों को जोड़ देता हूँ। और देखते-देखते एक शेर का कंकाल तैयार हो जाता है। यह देख दूसरा ब्राह्मण अपनी विद्या का प्रदर्शन कर सबको प्रभावित करना चाहता था और उस कंकाल में मांस और चमड़ी लगा देता है।
अब भला तीसरा ब्राह्मण कहाँ पीछे रहने वाला था। वह हँसते हुए बोला,
“तुम सब यह क्या पचकानि हरकते कर रहे हो? मैं दिखाता हूँ तुम्हे असली विद्या। मैं इस शेर में अभी प्राण भरकर इसे जीवित कर देता हूँ।”
ऐसा कहकर तीसरा ब्राह्मण मंत्र उच्चारण करने लगता है।
चौथा ब्राह्मण जोर से चिकता है,
“थेरो! थेरो! तुम यह क्या कर रहे हो? अगर यह शेर जीवित हो गया तो……..”
अभी वह अपनी बात पूरी भी नहीं कर पता है की मंत्र उच्चारण करने वाला ब्राह्मण उस पर गरज पड़ता है,
“मुर्ख, अल्पबुद्धि बिद्वानो के बीच अपनी जुबान दुबारा मत खोलना।”
और वह फिरसे मंत्र पढ़ने लगता है।
चौथा ब्राह्मण समझ जाता है की यहाँ कोई उसकी बात नहीं मानेगा। और वह तेजी से भागकर एक पेड़ पर चढ़ जाता है। उधर मंत्र की शक्ति से शेर में प्राण आ जाते है। शेर तो शेर है हिंसक, घातक और प्राणनाशक। वह क्या जाने उसे किसने बनाया? क्यों बनाया? वह तो बस मारना और खाना जानता है। देखते-देखते शेर ने तीनो ब्राह्मणो को मार डाला। और अपना पेट भर घने जंगल में चला गया। चौथा ब्राह्मण सही समय देखकर गांव की तरफ वापस लौट गया।
चौथा ब्राह्मण मन ही मन सोच रहा था,
“ऐसा ज्ञान किस काम का जो जो इंसान की सूझ बुझ और समझदारी को क्षीण कर दें।”
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