Skip to content

Kahani Ki Dunia

Iss Duniya Mein Jane Kuch Naya

Menu
  • Home
  • Hindi Stories
  • Full Form
  • Business Ideas
  • Contact us
  • Web Stories
Menu

अपने सोच को कैसे बदले? | Gautama Buddha Inspirational Story in Hindi

Posted on August 10, 2020

Contents

  • 1  Gautama Buddha Inspirational Story in Hindi
    • 1.1 अपने सोच को कैसे बदले?
    • 1.2  Gautama Buddha Inspirational Story in Hindi
    • 1.3 यह भी पढ़े (Also Read):-

 Gautama Buddha Inspirational Story in Hindi

 

अपने सोच को कैसे बदले?

बुद्ध कहते है जैसा हम सोचते है वैसा ही हम बनते है। हमारी सोच ही हमारा निर्माण करती है। लेकिन यह सोच क्या है? और यह कहाँ से आती है? क्या आपने कभी सोचा है की आप अपनी सोच का निर्माण करते है या आपकी सोच आपका निर्माण करती है? वास्तव में हम सब जीवनभर सोचने का काम करते है। और यही वह काम भी है जो हम बिना सोचे समझे करते है। क्या आप कभी सोच समझकर सोचने का काम करते है? नहीं। आपकी सोच सदा ही चलती रहती है।

 

आपको तो यह पता भी नहीं होता की आप क्या सोच रहे है? जैसे अभी आप देखे की आप क्या सोच रहे है? अगर आप ध्यान देंगे तो आप अपनी इस समय की आखरी सोच को पकड़ पाएंगे। लेकिन ध्यान देने पर आपको पता चलेगा की यह सोच कब शुरू हुई आपको पता नहीं। यह बस सदा ही आती रहती है। लेकिन क्या सोचने से हमें वह सब कुछ मिल सकता है जो हम चाहते है? वैसे तो हमारे जिंदगी में हमें जो  मिलता है वह हमारी सोच का ही परिणाम होता है। लेकिन क्या हमारी सोच ही हमारे लिए सब कुछ है? नहीं। हमारी सोच केबल हमें दिशा दे सकती है। लेकिन उस दिशा पर हमें चलना तो पड़ेगा ही। और अगर एक बार हम चल पड़े तो हम अपने सोच के अनुरूप ही वह रास्ता तेइ करते है। सच तो यही है की हमारा सोच हमारी निर्माण करती है, जिसका हमें पता भी नहीं है। जबकि होना यह चाहिए की हम अपने सोच का खुद निर्माण करें। हमारा निर्माण हमारे खुद के हाथो में हो।

 

बुद्ध जब आपसे कहते है की जैसा हम सोचते है वैसा ही बनते है, तब वह चाहते है की आप जागृत हो। और इस बात को समझे की आपके साथ जो घट रहा है, जो भी आप है उसके निर्माण में आपका कोई हाथ नहीं है। यह आपके मन के कारन खुद से घट रहा है। आप जागृत हो और अपनी मन को नियंत्रित करे, अपनी सोच को बदले और अपना खुद का निर्माण करें।

 

अगर मैं आपसे कहूँ की यह दुनिया सुखी रहे इसके लिए यह दुनिया कैसी होनी चाहिए? तब आप क्या कहेंगे? यही सवाल मैंने एक व्यक्ति से पूछा की इस दुनिया को सुखी होने के लिए कैसा होना चाहिए? तब उसने कहा, “इस दुनिया में सुख होना चाहिए, हर जगह सुख ही होना चाहिए। और यह दुनिया स्वर्ग जैसा होना चाहिए।” तब मैंने उससे कहा की, “तुम इसके आगे जाकर सोचो की इससे बेहतर क्या हो सकता है?स्वर्ग से भी बेहतर क्या हो सकता है?” और उसने सोचने की कोशिश की। उसने अपने सोच की दायरे को बढ़ाने की कोशिश की। परन्तु उसने कहा की, “यहाँ पर एक दिवार है। उसके पार मैं नहीं जा पा रहा हूँ। इससे ज्यादा अच्छा मैं नहीं सोच पा रहा हूँ।”

 

तो यह हमारी सोच है जो उतना ही सोच सकता है जितना की उसने इस दुनिया में समझा और देखा है। उसके बाहर वह नहीं सोच सकता।

 

 Gautama Buddha Inspirational Story in Hindi

एक ऊँचे पहाड़ी स्थान पर एक गुरु का आश्रम था। लेकिन उनका कोई शिष्य नहीं था। जब भी कोई उनका शिष्य बनने के लिए आता वह उसकी परीक्षा ले लेते। और उनकी परीक्षा में अभी तक कोई भी सफल नहीं हुआ था। ऐसे ही एक युवा उन गुरु के पास उनकी महिमा सुनकर उनके पास आया। उन गुरु का शिष्य बनने की चाहत में वह गुरु के पास पहुँचा। और वहाँ पहुँचकर अपने गुरु से कहा, “हे गुरुदेव, मैं बहुत दूर से आया हूँ। कृपया कर आप मुझे अपना शिष्य स्वीकार करे।”

 

गुरु ने कहा, “तुम मेरे शिष्य क्यों बनना चाहते हो?”

 

शिष्य ने कहा, “मैं आपकी सेवा करना चाहता हूँ गुरदेव।”

 

गुरु ने कहा, “मैं अपनी सेवा स्वयं कर सकता हूँ। मुझे तुम्हारी आवश्यकता नहीं है।”

 

शिष्य गुरु के चरणों में गिर गया। और बोला, “हे गुरुदेव, मुझे अपना शिष्य बना ले। मैं आपसे ही ज्ञान प्राप्त करना चाहता हूँ।”

 

गुरु ने कहा, “ठीक है। लेकिन मैं अज्ञानी को ही अपना गुरु बना सकता हूँ। क्या तुम अज्ञानी हो?”

 

शिष्य ने थोड़ा सोचा और बोला, “जी गुरुदेव। मैं पूर्ण अज्ञानी हूँ।”

 

गुरु के चहरे पर एक मंद मुस्कान आ गई। और वह बोले, “क्या किसी अज्ञानी को यह पता हो सकता है की वह ज्ञानी है। और जिसे पता हो की वह अज्ञानी है क्या वह वास्तव में अज्ञानी हो सकता है? क्यूंकि यहाँ तो सभी अपना अपना ज्ञान बखारते रहते है।”

 

शिष्य चुप रहा। उसने कुछ नहीं कहा।

 

गुरु ने कहा, “ठीक है, अगर तुम मेरी परीक्षा में उत्तीर्ण रहे तो मैं तुम्हे अपना शिष्य अवश्य बना लूंगा। आज से तुम मेरे साथ रहोगे। मैं जो करूँ उसे ध्यान से देखना और समझना। लेकिन कोई प्रश्न मत पूछना। अगर तुमने प्रश्न पूछा तो तुम्हे यहाँ से जाना होगा। तुम्हे मुझपर पूर्ण बिश्वास करना होगा।”

 

शिष्य ने गुरु के शर्तो को स्वीकार किया।

 

अगली सुबह, गुरु शिष्य को लेकर एक नदी पर पहुँचे। वहाँ पर उन्होंने शिष्य के हाथ पर एक घड़ा दिया और एक बर्तन दिया।

 

गुरु ने कहा, “इस बर्तन से इस घड़े में पानी भरदो।”

 

शिष्य ने बर्तन देखा तो वह चौंका। उसने देखा की उस बर्तन से तो पानी उठाया ही नहीं जा सकता था। क्युकी उस बर्तन का निचला हिस्सा हिस्सा ही नहीं था। वह कुछ बोलना चाहता था लेकिन नहीं बोला। वह उस बर्तन से घड़े को भरने लगा। लेकिन बर्तन में न पानी आता और न ही घड़ा भरा।  शिष्य का धैर्य जवाब देने लगा।

 

शिष्य मन ही मन सोचता है, “गुरुदेव पागल तो नहीं हो गए है। इस बर्तन से तो घड़ा जीवनभर नहीं भरेगा।”

 

आखिरकार शिष्य का धैर्य जवाब दे गया।

 

शिष्य ने गुरु से पूछा, “इस बर्तन से यह घड़ा कैसे भरेगा गुरुदेव? इस बर्तन के तो निचे का हिस्सा ही नहीं है। सारा पानी तो निचे से ही निकल जाता है।”

 

गुरु ने कहा, “अब तुम जा सकते हो।”

 

शिष्य ने भी सोचा, “ऐसे पागल गुरु के पास रहने से भी क्या फायदा।”

 

शिष्य वहाँ से चला गया।

 

रात में एकांत में शिष्य ने सोचा, “इतनी बात तो गुरुदेव को भी पता होगी। लेकिन फिर भी उन्होंने मुझे वह बर्तन दिया पानी भरने के लिए। इसमें जरूर कोई बात होगी जिसे मैं समझ नहीं पाया।

 

वह शिष्य फिर अगली सुबह, गुरु के पास पहुँचा। और बोला, ” गुरुदेव, मुझे माफ़ कर दे।”

 

गुरु ने कहा, “मैंने तुम्हे पहले ज्ञान दिया और वह तुम ले नहीं पाए। क्युकी तुम पहले से ही अपना ज्ञान लिए घूम रहे हो। जिस प्रकार बिना बर्तन के निचले हिसे के घड़े में पानी नहीं भरा जा सकता उसी प्रकार हमारी शरीर की इन्द्रिया वह भी इसी बर्तन की तरह है जिससे हम मन रूपी घड़े को भरने का प्रयास करते है। लेकिन मन कभी भरता नहीं है। इसलिए मनुष्य कभी संतुष्ट नहीं हो पाता।”

 

शिष्य ने गुरु से क्षमा मांगी। और कहा, “गुरुदेव, मुझे अपना शिष्य स्वीकार करें।”

 

गुरु ने कहा, “तुम में धैर्य है। इसलिए तुम दो पहर तक धैर्यपूर्वक रुके रहे। तुममे समझ है। इसलिए तुम वापस आ सके। यहाँ से जो गया वह कभी वापस नहीं आया। तुम्हारे अंदर अपनी सोच बदलने का क्षमता है जो अपने विचारो कोबदल सकते है वह अपने स्वयं का निर्माण भी देख सकते है। मैं तुम्हे अपना शिष्य अवश्य बनाऊँगा।

 

दोस्तों आपको यह कहानी “अपने सोच को कैसे बदले? | Gautama Buddha Inspirational Story in Hindi” अच्छी लगी हो तो कमेंट जरूर करिए और इस कहानी को अपने बच्चों, दोस्तों और परिवारजनों के साथ शेयर ,करें। धन्यवाद।

 

यह भी पढ़े (Also Read):-

  • बाप और अनाथ बेटा | Inspirational Story In Hindi
  • एक अंधे भिखारी की कहानी | Life-Changing Inspirational Story In Hindi
  • पति-पत्नी की एक प्रेरणादायक कहानी | Husband And Wife Life Changing Inspirational Story In Hindi
  • टीचर और स्टूडेंट की एक प्रेरणादायक कहानी | Teacher And Student Inspiring Story In Hindi
  • एक मेहनती नौजवान की कहानी | Best Inspirational Story In Hindi
  • एक भिखारी की प्रेरणादायक कहानी | Heart Touching Inspirational Story In Hindi

 

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Latest Post

  • NIOS Full Form: NIOS Board क्या है पूरी जानकरी हिंदी में
  • Top 5 High Salary Banking Courses in Hindi | Best Banking Jobs After 12th
  • KVPY Exam क्या है | What is KVPY Exam in Hindi
  • What is No Cost EMI in Hindi | No Cost EMI क्या होता है
  • NASA Scientist कैसे बने | How to Become a NASA Scientist
©2023 Kahani Ki Dunia | Design: Newspaperly WordPress Theme