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 दो कुत्तों की तीर्थ यात्रा

दो कुत्तों की तीर्थ यात्रा | Kahani in Hindi

Posted on August 11, 2020

दो कुत्तों की तीर्थ यात्रा Do Kutto Ki Tirth Yatra Kahani in Hindi

 दो कुत्तों की तीर्थ यात्रा

यमुनागढ़ के पास एक गांव था। उस गांव में दो कुत्ते रहते थे। दोनों आपस में गहरे मित्र थे। साथ साथ रहते तथा सोते थे। उनमे से एक कुत्ता काला था। तो उसका नाम कालू रखा गया। और दूसरा लाल था इसलिए उसका नाम लालू रखा गया।

 

एक दिन दोनों कुत्तों ने तीर्थ यात्रा करने की सोची। किन्तु वह रास्ता नहीं जानते थे। दोनों ने निश्चय किया की यात्रा आरम्भ तो करें रास्ता तो अपने आप निकल जाएगा।

 

एक दिन दोनों एक साथ तीर्थ यात्रा पर चल दिए। चलते-चलते रात हो गई। वह दोनों एक पेड़ के निचे सो गए। थके होने के कारन उन्हें नींद आ गई। सुबह होने पर फिर अपनी यात्रा पर चल पड़े। दोनों पहुँचे एक गांव के पास। तभी उन्हें बहुत जोर की भूख लग गई। वहाँ उन्हें कुछ चूहे दिखाई दिए। लालू की पुच खड़ी हो गई।

 

लालू कालू से बोला, ” क्यों भाई? आप चाहो तो मैं दो चार चूहों की चटनी बना डालू।”

 

कालू ने गर्दन हिलाकर कहा, “नहीं भाई लालू जी, हम तीर्थ यात्रा पर निकले है। और तीर्थ यात्रा में किसी की हत्या करना महा पाप होता है। इसलिए आप कुछ दूसरा उपाय खोजो जिससे दुसरो की हत्या न हो। तथा हूमें मांस का सेवन भी न करना पड़े।

 

दोनों कुत्ते दोराहे पर रुक गए। वहाँ पर एक मंदिर था। कुछ देर सुस्ताने के पश्चात उन्होंने फैसला किया की अलग-अलग दिशा की ओर चलना चाहिए। जिसको जो मिलेगा खा लेंगे। एक साथ चलेंगे तो दोनों में से किसी का भी पेट नहीं भरेगा। चलने से पहले दोनों ने तेइ किया की वह आकर इसी स्थान पर मिलेंगे।

 

लालू कुत्ता चलते-चलते एक गांव में पहुँचा। गांव में एक ब्राह्मण रहता था। वह पूजा-पाठ करके भोजन करने ही जा रहा था।  उसकी पत्नी ने उसके लिए थाल सजाकर रखा था।

ब्राह्मण ने भोजन को भोग लगाया ही था की लालू कुत्ते ने झपट से उसके थाली में मुँह डाल दिया तथा एक पूरी उठाकर भागा। ब्राह्मण ने हरे राम हरे राम कहा तथा हाथ धो कर उठ गया।

 

ब्राह्मण ने अपनी पत्नी से कहा, “बेचारे कुत्ते भी भूखे है। यह भोजन आप उन्हें ही खिला दीजे।”

 

ब्राह्मण की पत्नी गुस्से से बोली, “आप यह क्या कह रहे है? इस कुत्ते को यह थाली! आप ही कहिए न इसमें कितने सारे पकवान है, खीर-पुरिया, दो तरह की सब्जी, अचार, दही इत्यादि मिष्ठान है।”

 

ब्राह्मण दयाभाब से बोला, “तुम ठीक कहती हो पर यह भी तो भूखे होंगे। आप तो यह थाली इन्हे ही दे दें। सोचलो की इनके भाग्य में ही यह थाली लिखी थी। आज का पकवान तुम्हारे हाथो से इनके भाग्य में आ गया।”

 

इसके पश्चात ब्राह्मण ने लालू कुत्ते को पेट भरकर भोजन करवाया। लालू ने उसे खूब दुआए दी।

 

उधर कालू कुत्ता एक किसान के वहाँ पहुँचा। किसान अपने खेत में काम कर रहा था। उसकी पत्नी थाल रखकर गई थी। थाल में रोटियां और शाक था। खेत का काम पूरा करके वह थाल खोलकर खाना खाने को तैयार ही हुआ था की कालू ने तुरंत ही उसके भोजन में मुँह डाला तथा थोड़ी सी रोटी का टुकड़ा तोड़कर वहाँ से भाग गया। किसान एकदम गुस्से से भर उठा। उसकी आँखे अंगारो के समान लाल हो गई। किसान ने अपनी लाठी उठाई। गाली देते हुए उसने लाठी से इतना जोर वॉर किया की कुत्ते की कमर टूट गई। वह पीड़ा से चिल्लाने लगा। कमर टूट जाने के कारन वह भाग ही नहीं सका। इसी बीच उसकी कमर में दो चार लाठी और पड़ गई। कुत्ता अधमरा हो गया।

 

लालू तो वहाँ खा-पीकर मस्त पड़ा था। वह आँखे फाड़ फाड़कर अपने साथी की प्रतीक्षा कर रहा था। उसका साथी उसे कही नजर नहीं आ रहा था। लाचार तथा उदास होकर वह दोराहे पर बैठ गया। थोड़ी देर बाद उसे कालू नजर आया। वह लपककर उसकी ओर दौड़ पड़ा। उसकी टूटी कमर देखकर वह बहुत दुखी हुआ।

 

लालू ने कालू से पूछा, “भाई, तुम्हारे साथ ऐसी हालत किसने की? कौन निष्ठुर पापी है जिसने रोटी के पीछे तुम्हारी कमर ही तोड़ डाली?”

 

कालू की आँखे भर आई। उसने पीड़ा से कराते हुए सारी कथा सुनाई। कथा सुनाकर वह क्रोध तथा दुःख में डूबकर बोला, “मैं उससे अपना बदला जरूर लूंगा। उस किसान को बताऊँगा की खुद की कमर टूटने का दर्द क्या होता है? और कमर टूटने के बाद किस प्रकार दुःख होता है ?”

 

लालू भी कर्तव्य होकर बोला, “मुझे भी उस ब्राह्मण का कर्ज चुकाना है। उसने मुझपर इतनी कृपया की है मैं रोम रोम से उसे आशीर्वाद देता हूँ।”

 

इसी प्रकार बातचीत करते हुए दोनों कुत्तों ने अंत में यह निश्चय किया की उन्हें प्राण त्याग देने चाहिए तथा प्राण त्यागने के पश्चात उन्हें उनके घरो में जन्म लेना चाहिए। इत्तेफाक से न किसान का कोई पुत्र था और न ही ब्राह्मण के। दोनों कुत्तों ने मंदिर के आगे जाकर अपने प्राण त्याग दिए। एक ही पल में दोनों मृत्यु को प्राप्त हो गए।

 

कालू ने किसान के घर में जन्म लिया। किसान बहुत प्रसन्न हुआ। किन्तु उसकी ख़ुशी अगले ही पल विलुप्त हो गई। घर में इस पुत्र की पैदा होते ही उसका बेल मर गया। पत्नी अस्वस्थ होने लगी। पहले जन्मदिन पर किसान के हरे भरे खेत को जानवर चट कर गए।

 

उधर ब्राह्मण के घर भी बेटा पैदा हुआ। पुत्र के जन्म होते ही राजदरबार में ब्राह्मण की पद ऊँची हो गई। ब्राह्मण ने राजा को युद्ध में जित की बात बताई। राजा युद्ध जित गया। इससे प्रसन्न होकर राजा ने ब्राह्मण को राजपंडित नियुक्त कर दिया। उसे एक महल तथा अपार धन भेट दिया। जैसे जैसे ब्राह्मण का बेटा बड़ा होता गया वैसे वैसे वह भी बाप की तरह तेजस्वी निकलता गया। उसने छोटी सी उम्र में सारे शास्त्रों का अध्ययन कर लिया। वह बड़े बड़े पंडितो को शास्त्रों में हरा देता। इससे ब्राह्मण की कीर्ति में चार चाँद लग गए।

 

उधर किसान के बेटे का स्वभाब बिलकुल भी अच्छा नहीं था। वह बात-बात पर अपने माता-पिता को डाटता था। उन्हें गालिया बकता था। वह जुया खेलकर बचेकूचे धन को उड़ाने लगा। किसान बहुत ही दुखी हुआ। अंत में उसने सोचा की इसे सुधारने में कोई उपाय करना चाहिए। इस तरह सोचते हुए वह एक बुद्धिमान व्यक्ति के पास पहुँचा। उसने उसके सामने अपनी समस्या रखी।

 

बुद्धिमान व्यक्ति बोला, “तुम इसकी शादी  करवादो। शादी एक ऐसा माध्यम है जिससे अच्छे अच्छे भी सीधा हो जाते है।”

 

किसान ने तुरंत अपने लड़के का शादी करने का विचार किया। वह लड़की की खोज करने लगा।

 

उधर ब्राह्मण का विचार भी अपने बेटे की शादी करने का हुआ। एक सुकन्या से उसका विवाह हो गया। उसके बेटे की पत्नी भी सुशिक्षित थी। उसने आते ही घर को स्वर्ग बना दिया। घर में धन-धान्य पहले से था ही। किन्तु अब घर में तरह तरह की खुशिया आने लग गई जिससे घर स्वर्ग के सम्मान हो गया।

 

किसान ने भी अपने पुत्र का विवाह कर दिया। शादी के अगले दिन ही उसका बेटा अचानक चल बसा। उसके बेटे की पत्नी ने आकर कहा उन्हें भला बुरा कहा तो वह अचेत हो गया। होश में आते ही वह दिवार पर सिर मार मार कर रोने लगा। और चिल्लाने लगा हाय मेरा बेटा! हाय मेरा बेटा! मेरी तो कमर तोड़कर चला गया।

 

दोस्तों इस संसार में जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल भोगना पड़ता है।

 

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