Sudip Dutta Success Story in Hindi
आज के इस कहानी में हम एक ऐसे व्यक्ति के बारेमे बात करेंगे, जिसने यह साबित कर दिया की ऊंचाई तक पहुंचने के लिए सिर्फ एक बड़ी सोच, पक्का इरादा और कभी न हार मानने वाला एक जस्बे की जरुरत होती है। मुशीबते हमारे जीबन में आते रहते है। कोई इस बात को समझकर आगे बढ़ता है। और जो नहीं समझता वे पूरी ज़िंदगी रोता रहता है। ज़िंदगी के हर मोड़ पर हमारा सामना मुशीबतों से होता है। इसके बिना ज़िन्दगी की कल्पना तक नहीं की जा सकती। आज हम एक ऐसे इंसान की कहानी पड़ने जा रहे है जिसके पास बचपन में दोस्तों के दुआरा दिए गए मुंबई जाकर काम ढूंढने के सुझाब के अलावा कुछ नहीं था।
सुदीप दत्त की कहानी
जेब में बिना पैसे के खाली पेट रहना पड़ता था और स्टेशन पर सोता था। उनके पिता और भाई के मौत के सदमे से वे हाल ही में बहार निकले थे। ऐसे परिस्तिथिओं से गुजरने के बाद आज सुदीप दत्त ने जो सफलता हासिल की है वे आज के युबाओ के लिए बहुत ज़ादा कठिन है।
पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर से संबंध रखने वाले इस बच्चे के पिता आर्मी में थे। 1973 की जंग में गोलियां लगने के बाद वे अपाहीच हो गए थे। इस परिस्तिथि में एक बड़ा भाई ही उमीद की किरण था। लेकिन आर्थिक तंगी के चलते परिवार बड़े भाई का इलाज न कर सका। और उसकी मृत्यु हो गई। उनके पिता भी अपने बड़े बेटे के मौत की सदमे में चल बसे।
उसकी मां उस बच्चे के लिए भावनात्मक सहारा जरूर थी लेकिन उसके ऊपर चार भाई और बहन की ज़िमेदारी थी। अपने परिवार की ज़िमेदारी उसके ऊपर थी। उसके बाद उसे 15 रूपए का एक मजदूरी का काम मिला और सोने के लिए एक जगह। सोने की जगह एक ऐसे कमरे में थी जहां बिश मजदुर सोते थे। कमरा इतना छोटा था की सोते वक़्त हिलने की भी जगह नहीं थी।
2 साल के मजदूरी के बाद उसके जीबन में नया मोड़ तब आया, जब नुकशान के चलते उसके मालिक ने फैक्टरी बंध करने का फैसला किया। ऐसी परिस्तिथि में नयी नौकरी ढूंढने के बजाई फैक्टरी खुद चलाने का फैसला किया। और फिर 1975 में अपनी अब तक की बचाई पूंजी और किसी तरह दोस्तों से उधार लेकर 16,000 रूपए इखट्टा किये। फैक्टरी खरीदने के लिए 16,000 की कीमत बहुत कम था। लेकिन सुदीप ने दो साल का मुनाफा बाटने का वादा करके किसी तरह फैक्टरी के मालिक को मना लिया।
सुदीप उसी फैक्टरी का मालिक बन चूका था जहां कल तक वे सिर्फ एक मजदुर था। 19 साल का सुदीप, जिसके लिए खुद का पेट भरना एक चुनौती थी उसने साथ ही अन्य मजदूरों के परिवारों की जिमेदारी भी ले ली थी। एल्युमीनियम पैकेजिंग इंडस्ट्री उस समय अपने बुरे दौर से गुजर रही थी। सुदीप यह जान गए थे की बेहतर उत्पाद और नयापन ही उन्हें दुसरो से बेहतर साबित करेगा। लेकिन अच्छा बिकल्प होने के बाबजूद जिंदल जैसे कंपनी के सामने टिक पाना आसान नहीं था। सुदीप ने बर्षो तक बड़े ग्राहकों को अपने प्रोडक्ट्स के बारेमे समझाना जारी रखा। और साथ ही छोटी कंपनी के ऑर्डर्स के सहारे अपना बिज़नेस चलाते रहे। उनकी मेहनत तब रंग लायी जब बड़ी बड़ी कंपनी से आर्डर मिलना शुरू हुआ। सुदीप को लगा की उसने वे सफलता हासिल कर ली है। लेकिन उसे आने वाले चुनौतियों के बारेमे बिलकुल भी पता नहीं था।
अनिल अग्रवाल के एक आदमी ने इंडिया फल नामक बंद पड़े कंपनी को खरीद कर पैकेजिंग क्षेत्र में कदम रखा। अनिल अग्रवाल और उनका वेदांत ग्रुप सबसे बड़ी कंपनी में से एक रहे है। और उनके सामने टिक पाना भी न मुंमकिन सा लक्ष था। लेकिन वेदांत जैसे कंपनी से अप्रबाहित रहकर सुदीप ने अपने उत्पादों को बेहतर बनाना जारी रखा। और आखिर में वेदांत जैसे बड़ी कंपनी को सुदीप के सामने घुटने टेकने पड़े। और इंडिया फल कंपनी को सुदीप को बेचना पड़ा। इस डील के बाद से वेदांत समूह पैकेजिंग इंडस्ट्री से अलबिदा हो गए। इस उपलब्धि के बाद अपनी कंपनी को तेजी से आगे बढ़ाया। आज सुदीप की कंपनी अपने क्षेत्र में सब्सि बड़ी कंपनी है। आज सुदीप की कंपनी का मार्किट कैंप 1600 करोड़ रूपए से भी ज़ादा का है। उन्होंने गरीब और और जरुरतमंदो की सहायता के लिए सुदीप दत्त फाउंडेशन की स्थापना की।
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