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महाकवि कालिदास की प्रेरणादायक कहानी | Life-Changing Motivational Story in Hindi

Posted on May 31, 2020

इस लेख में हम बात करेंगे महाकवि कालिदास के बारे में, उनकी कहानी (महाकवि कालिदास की प्रेरणादायक कहानी) के बारे में।

महाकवि कालिदास की प्रेरणादायक कहानी | Life Changing Inspirational Story in Hindi

महाकवि कालिदास की कहानी – Life Changing Motivational Story in Hindi

महाकवि कालिदास के कंठ साक्षात सरस्वती जी का वास था। शास्त्रार्थ में उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता था। अपार यश, प्रतिष्ठा और सम्मान पाकर एक बार कालिदास जी को अपनी बिद्दत्ता का घमंड हो गया। उन्हें लगा की उन्होंने बिश्व का सारा ज्ञान प्राप्त कर लिया है। और अब सिखने को कुछ बाकि नहीं बचा। उनसे बड़ा ज्ञानी संसार में दूसरा कोई नहीं है।
एक बार पड़ोसी राज्य से  शास्त्रार्थ का निमंत्रण पाकर कालिदास बिक्रमादित्य से अनुमति लेकर अपने घोड़े पर रवाना हुए। गर्मी का मौसम था। धुप काफी तेज थी। और लगातार यात्रा से कालिदास को प्यास लग गई।
थोड़ी तलाश करने पर उन्हें एक टूटी चोपड़ी दिखाई दी। पानी की आशा में वह उस टूटी झोपड़ी की ओर चल पड़ा। झोपड़ी के सामने एक कुआं भी था। कालिदास ने सोचा की अगर कोईझोपड़ी में हो तो उससे पानी का अनुरोध किया जाए।
उसी समय झोपड़ी से एक छोटी बच्ची मटका लेकर निकली। बच्ची ने कुंए से पानी भरा। और वहां से जाने लगी। कालिदास उसके पास जाकर बोले, “बालिके ! बहुत प्यास लगी है। जरा पानी पीला दो।”
बच्ची ने पूछा, “आप कौन है? मैं आपको जानती भी नहीं। पहले आप अपना परिचय दीजिए।”
कालिदास को लगा मुझे कौन नहीं जानता भला। मुझे परिचय देने की क्या जरुरत है। फिर भी प्यास से बेहाल होकर कालिदास बोले, “बालिके, अभी तुम बहुत छोटी हो इसलिए मुझे नहीं जानती। घर में कोई बड़ा है तो उन्हें भेजो।”
वह मुझे देखकर ही पहचान जायेगा। मेरा बहुत नाम और सम्मान है दूर दूर तक।
मैं बहुत विद्वान व्यक्ति हूँ। बालिका बोली, आप असत्य कह रहे है। संसार में केबल दो ही बलबान है। और उन दोनों को में मैं जानती हूँ। अपनी प्यास बुझाना चाहते हो तो उन दोनों का नाम बताए। बहुत सोचने के बाद कालिदास बोले, “मुझे नहीं पता। तुम ही बता दो मगर मुझे पानी पीला दो। मेरा गला सूखा जा रहा है।”  बालिका बोली, “वह दोनों है अन्न और जल। भूक और प्यास में इतनी शक्ति है की बड़े से बड़े बलबान को भी झुका दे। देखिए प्यास ने आपकी क्या हालत बना दी।”

 

कालिदास चकित रह गए। बालिके का तर्क अकाट्य था। बड़े बड़े बिद्वानों को पराजित कर चुके कालिदास एक बच्ची के सामने निरुत्तर खड़े थे। बालिका ने फिरसे पूछा, “सत्य बताए, कौन है आप? ”   बालिका चलने की तैयारी में था। कालिदास  नम्र होकर बोले, “बालिके!  बटोही हूँ। “
मुस्कुराते हुए बालिका बोली, “आप अभी भी झूट बोल रहे है। संसार में दो ही बटोही है। उन दोनों को मैं जानती हूँ। बताए वह कौन है। तेज प्यास ने पहले ही कालिदास की बुद्धि शीन कर दी थी। पर लाचार होकर उन्होंने फिर से अनभिज्ञता ब्यक्त कर दी।
बालिका बोली, “आप खुद को बड़ा बिद्वान बता रहे है। और यह भी नहीं जानते?  एक जगह से दूसरी जगह बिना थके जाने वाला बटोही कहलाता है। बटोही दो ही है, एक चंद्रमा और दूसरा सूर्य  जो बिना थके चलते रहते है। आप तो थक गए है। भूक प्यास से बेदम है। आप कैसे बटोही हो सकते है? “
इतना कहकर बालिका ने पानी से भरा मटका उठाया और झोपड़ी के भीतर चली गई। अब तो कालिदास और भी दुखी हो गए। इतने अपमानित वह अपने जीबन में कभी नहीं हुए। प्यास से शरीर की शक्ति घट रही थी। दिमाग चकरा रहा था। उन्होंने आशा से झोपड़ी की ओर देखा।
तभी अंदर से एक बृद्ध स्त्री निकली। उसके हाथ में एक खाली मटका था। वह कुंए से पानी भरने लगी। कालिदास बोले, “माते, पानी पीला दीजिए। बड़ा पुण्य होगा। ”  स्त्री बोली, “बेटा मैं तुम्हे जानती नहीं हूँ। अपना परिचय दो। मैं तुम्हे अबश्य पानी पीला दूंगी।”  कालिदास ने कहा, “मैं मेहमान हूँ, कृपा पानी पीला दीजिए।”
  स्त्री बोली, “तुम मेहमान कैसे हो सकते हो? संसार में दो ही मेहमान है। पहला धन और दूसरा यौबन। इन्हे जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम?”   अब तक के सारे तर्क से पराजित कालिदास बोले, “मैं सहनशील हूँ। अब आप पानी पीला दीजिए।”

 

स्त्री ने फिर से कहा, “नहीं, सहनशील तो दो ही है। पहली धरती, जो पापी पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चिर कर बीज बो देने से अनाज के भंडार देती है। और दूसरा पेड़, जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देती है। तुम सहनशील नहीं हो सकते। सच बताओ तुम कौन हो?”
  कालिदास लगभग मूर्छा की स्तिथि में आ गए। और तर्क-बितर्क से झल्लाकर बोले, “मैं हटी हूँ।”  स्त्री बोली, ” तुम फिर असत्य बोल रहे हो। हटी दो ही है। पहला नख और दूसरा केश। कितना भी काटोबार बार निकल ही आते है। सत्य कहे ब्राह्मण आप कौन है?”  पूरी तरह अपमानित और पराजित होकर कालिदास ने कहा, “फिर तो मैं मुर्ख ही हूँ।”
स्त्री बोली, “नहीं। तुम मुर्ख कैसे हो सकते हो। मुर्ख दो ही है। पहला राजा, जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है। दूसरा दरबारी पंडित, जो राजा को प्रसन्न करने के लिए गलत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेस्टा करता है।”

 

कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास उस स्त्री के पैर पर गिर पड़े। और पानी पिने के लिए गिड़गिड़ाने लगे। स्त्री ने कहा, “उठो बत्स उठो!”
आवाज सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माँ सरस्वती वहां खड़ी थी। कालिदास नतमस्तक गए। माता ने कहा, “शिक्षा से ज्ञान आता है न की अहंकार। तूने शिक्षा की बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया। और अहंकार कर बैठे। इसलिए मुझे तुम्हारे इस घमंड को बहार निकालने के लिए यह सब करना पड़ा।”
कालिदास  को अपनी गलती समझ में आ गई। और भरपेट पानी पीकर वहां से चल पड़े।
इस कहानी से हमें बहुत बड़ी सीख मिलती है कि हमें कभी भी अपने ज्ञान का अहंकार नहीं करना चाहिए।
तो दोस्तों आपको यह Inspirational Story “महाकवि कालिदास की प्रेरणादायक कहानी | Life-Changing Inspirational Story in Hindi” कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताये। कमेंट करेंगे तो मुझे और भी प्रेरणा मिलेगी ऐसेही Inspirational Story in Hindi  और Motivational Story in Hindi लिखने में। अगर आपको और भी Inspirational Story in Hindi पड़नी है तो इस ब्लॉग को सब्सक्राइब करे।

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