The Real Story of Titanic in Hindi
10 अप्रैल 1912 को इंग्लैंड से न्यूयोर्क के लिए निकले RMS टाइटैनिक को देखकर यह कोई भी नहीं सोच सकता था की यह टाइटैनिक का पहला और आखरी सफर होगा। 4 दिन के यात्रा के बाद 14 अप्रैल 1912 को यह पता चला की टाइटैनिक एक बोहोत बड़े हादसे का शिकार हो गया है और इस घटना के करीब 3 घंटे बाद 15 अप्रैल 1912 को यह जहाज़ पूरी तरह से अटलांटिक महासागर के ठन्डे और बर्फीले पानी के निचे गायब हो गया।
टाइटैनिक एकाला ही नहीं डूबा बल्कि अपने साथ 1500 ज़िन्दगी को भी लेकर डूबा। टाइटैनिक डूबने का कारन अटलांटिक महासागर की एक बड़े बर्फ के हिमखंड से टकराने की बजह से हुयी थी जिसके बाद इस जहाज में एक बोहोत बड़ा छेद हो गया जिससे जहाज में पानी भर गया और वे डूब गया लेकिन जब टाइटैनिक का निर्माण किया जा रहा था तो यह दाबा किया जा रहा था की यह जहाज बोहोत ही मजबूत है और कभी भी न डूबने वाला जहाज है।

जब टाइटैनिक अपने पहले और आखरी सफर पर निकला था उसी समय एक पत्रकार ने जहाज की एक तस्बीर खींची थी जिस तस्बीर में यह साफ दिख रहा था की जहाज के निचे एक काला निशान था और उस समय इस बात पर इतना धियान नहीं दिया गया लेकिन हादसे के बाद जब सोदकर्ताओं ने छानबीन शुरू की तो पता चला की टाइटैनिक के रवाना होने से पहले ही उसमे रखे कोयले में आग लग गयी थी और यह आग करीब तीन हप्ते से जल रही थी जिसपर किसीकी नजर ही नहीं गयी।


अगर जहाज की स्पीड थोड़ी कम होती तो उसके सामने हिमखंड आ जाने पर जहाज को आसानी से नियंत्रित करके मोड़ा जा सकता था लेकिन स्पीड ज़ादा होने के बजह से जहाज को नियंत्रित नहीं करा गया और जहाज हिमखंड से टकरा गया।
टाइटैनिक के पहले यात्रा में इस पर 2,228 लोग सफर कर रहे थे। जब जहाज में पानी भरने लगा तो जहाज के कप्तान ने टक्कर के बाद भी जहाज को धीमी गति से आगे चलाना ठीक समझा क्युकी टाइटैनिक के हादसे की खबर सुनते ही एक दूसरे जहाज को टाइटैनिक के मदद के लिए रवाना कर दिया गया था लेकिन टाइटैनिक को दुर्घटना के बाद भी सहायता के लिए आये दूसरे जहाज की तरफ धीमी गति से चलाना काफी मेहेंगा पड़ गया क्युकी जहाज के आगे बढ़ने से वे पानी की दवाब से और ज़ादा टकराने लगा और पानी बोहोत तेजी से जहाज के अंदर घुसने लगा।

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