गाँव की पगडंडियों पर धूल उड़ रही थी, और हवा में मेले की मिठास घुली हुई थी। सूरज अपनी आखिरी किरणें बिखेर रहा था, और चारों ओर ढोल-नगाड़ों की थाप गूँज रही थी। यह कोई साधारण दिन नहीं था—यह था गाँव का सालाना मेला, जो हर साल बच्चों और बड़ों के लिए खुशियों का तोहफा लेकर आता था। मेले की रौनक ऐसी थी कि दूर-दूर से लोग अपने परिवारों के साथ यहाँ खिंचे चले आते थे।
बच्चों के लिए यह मेला किसी परियों की नगरी से कम नहीं था। रंग-बिरंगे झंडे हवा में लहरा रहे थे, मिठाइयों की दुकानों से मुँह में पानी लाने वाली खुशबू आ रही थी, और झूलों की चीख-पुकार से पूरा गाँव थिरक रहा था। यहीं से शुरू होती है हमारी Bacchon ki Kahani—एक ऐसी कहानी जो दोस्ती, हँसी, और अनमोल वादों की मिसाल बन गई।
मेले के बीच में बारह साल का रवि अपनी छोटी बहन रानी के साथ खड़ा था। रवि के हाथ में एक चटख लाल गुब्बारा था, जो उसने अभी-अभी एक खेल में जीता था। रानी अपनी नन्ही उंगलियों से एक चूरन की पुड़िया थामे हुए थी, और उसकी आँखें मेले की चमक को देखकर चमक रही थीं। दोनों भाई-बहन अपने माँ-बाप से भीड़ में बिछड़ गए थे, लेकिन उनके चेहरों पर डर की जगह उत्साह की लहर थी।
तभी उनकी नज़र पड़ी एक लंबे लड़के पर, जो अपने कंधे पर एक हरे रंग का तोता लिए हुए था। उसका नाम था सोनू। सोनू की उम्र कोई चौदह साल रही होगी, और उसकी मुस्कान में एक खास जादू था—ऐसा जादू जो किसी को भी उसका दोस्त बना दे।
“ये तोता बोलता है क्या?” रवि ने हिम्मत जुटाकर पूछा।
“हाँ, ये मेरा मिट्ठू है! ये सब कुछ बोलता है,” सोनू ने हँसते हुए कहा। “तू इसे कुछ बोलने को कह, ये वैसा ही दोहराएगा।”
रानी ने तुरंत अपनी प्यारी सी आवाज़ में कहा, “मिट्ठू, रानी बोल!”
तोते ने ऊँची आवाज़ में चिल्लाया, “रानी! रानी!”
तीनों बच्चे ठहाके मारकर हँस पड़े। यह छोटा सा पल उनकी दोस्ती की नींव बन गया। यह Bacchon ki Kahani अब एक नया रंग लेने वाली थी।
मेले में घूमते-घूमते तीनों एक विशाल झूले के पास पहुँचे। झूला इतना ऊँचा था कि ऐसा लग रहा था मानो यह आसमान को छू लेगा। रवि ने जोश में कहा, “चलो, इसमें बैठते हैं!”
“मुझे डर लगता है,” रानी ने मुँह बनाते हुए कहा।
“डरने की क्या बात है? हम सब साथ हैं न,” सोनू ने उसे हौसला दिया।
तीनों झूले में बैठ गए। जैसे ही झूला ऊपर गया, रानी की चीख निकल गई, लेकिन सोनू और रवि उसे हँसते हुए देख रहे थे। नीचे मेले की चमकती रोशनी और ऊपर ठंडी हवा का झोंका—यह पल उनकी जिंदगी में एक अनमोल याद बन गया। Bacchon ki Kahani में यह झूले का साहसिक सफर उनकी दोस्ती को और मजबूत कर गया।
शाम ढलते-ढलते मेले में भीड़ और बढ़ गई थी। तीनों दोस्त अब एक कठपुतली के तमाशे के पास खड़े थे। कठपुतलियाँ नाच रही थीं, और उनके साथ बच्चों की तालियाँ गूँज रही थीं। सोनू ने अचानक कहा, “हमारी भी अपनी एक कहानी होनी चाहिए, जैसे ये कठपुतलियाँ।”
“कैसी कहानी?” रवि ने उत्सुकता से पूछा।
“ऐसी कहानी जो हमेशा याद रहे। एक Bacchon ki Kahani, जिसमें हम तीनों हों, और हमारा ये मेला भी,” सोनू ने जवाब दिया।
रानी ने तुरंत कहा, “तो फिर हमें कोई वादा करना चाहिए।”
“कैसा वादा?” सोनू ने पूछा।
“हम हमेशा दोस्त रहेंगे, चाहे कुछ भी हो,” रानी ने गंभीरता से कहा।
तीनों ने हाथ मिलाया और वादा कर लिया। मेले की उस चहल-पहल में उनका यह वादा एक छोटा सा बीज था, जो आगे चलकर एक बड़ा पेड़ बनने वाला था।
Bacchon ki Kahani in Hindi
अगले दिन, जब मेला खत्म हो गया, तो तीनों दोस्त गाँव के पास बनी झील के किनारे मिले। झील का पानी इतना शांत था कि उसमें आसमान की परछाई साफ दिख रही थी। सूरज की किरणें पानी में सोने की तरह चमक रही थीं, और चारों तरफ पेड़ों की छाया और चिड़ियों की चहचहाहट थी। यहाँ का माहौल मेले की हलचल से बिल्कुल उलट था। सोनू ने एक चिकना पत्थर उठाया और झील में फेंका। पानी में लहरें उठीं, और तीनों उस लहर को देखते रहे।
“कल मेले में बहुत मज़ा आया न?” रवि ने कहा।
“हाँ, लेकिन आज यहाँ का सुकून भी अच्छा लग रहा है,” सोनू ने जवाब दिया।
रानी ने कहा, “हमें यहाँ हर साल आना चाहिए। ये हमारी Bacchon ki Kahani का हिस्सा बन जाए।”
“ठीक है, हर साल हम यहाँ आएँगे और अपने वादे को याद करेंगे,” सोनू ने मुस्कुराते हुए कहा।
तीनों ने फिर से हाथ मिलाया। झील के किनारे यह वादा उनकी दोस्ती का एक नया अध्याय शुरू कर रहा था। Bacchon ki Kahani में यह पल उनकी जिंदगी का सबसे खूबसूरत लम्हा बन गया।
समय बीतने लगा। हर साल मेला आता, और तीनों दोस्त झील के किनारे अपने वादे को दोहराते। कभी-कभी सोनू का तोता मिट्ठू भी उनके साथ होता। मिट्ठू की शरारतें उनकी हँसी का कारण बनती थीं। एक बार मिट्ठू ने रानी की चोटी पर बैठकर “रानी! रानी!” चिल्लाना शुरू कर दिया, और तीनों इतना हँसे कि उनकी आँखों में आँसू आ गए। यह छोटी-छोटी बातें उनकी Bacchon ki Kahani को और रंगीन बनाती थीं।
कई साल बीत गए। रवि अब बड़ा होकर गाँव के स्कूल में मास्टर बन गया था। वह बच्चों को पढ़ाता और उन्हें मेले की कहानियाँ सुनाता। सोनू ने अपने पिता की छोटी सी दुकान संभाल ली थी, जहाँ वह मिठाइयाँ और खिलौने बेचता था। रानी ने गाँव की लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया और उन्हें आत्मनिर्भर बनने की सीख देती थी। लेकिन उनकी दोस्ती में कोई बदलाव नहीं आया। हर साल मेला आता, और वे तीनों झील के किनारे मिलते। उनकी Bacchon ki Kahani अब सिर्फ उनकी नहीं थी—यह गाँव के हर बच्चे की प्रेरणा बन गई थी।
एक साल, जब मेला फिर से लगा, तो तीनों दोस्त झील के किनारे बैठे थे। अब उनकी उम्र बढ़ चुकी थी। रवि के बालों में हल्की सफेदी झलकने लगी थी, सोनू की मुस्कान में अब एक गहराई थी, और रानी की आँखों में अब भी वही बचपन की चमक थी। सोनू ने कहा, “हमारी Bacchon ki Kahani अब भी जिंदा है।”
“हाँ, और ये हमेशा जिंदा रहेगी,” रवि ने हँसते हुए कहा।
रानी ने एक फूल उठाया और झील में डाल दिया। “ये फूल हमारे वादे की तरह है—हमेशा तैरता रहेगा।”
तीनों ने एक-दूसरे को देखा और मुस्कुराए। उनकी कहानी, जो मेले से शुरू हुई थी, अब एक अनमोल याद बन चुकी थी।
लेकिन यह कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। एक दिन, जब रवि स्कूल में बच्चों को पढ़ा रहा था, तो उसने अपनी दोस्ती की कहानी सुनाई। बच्चों की आँखें चमक उठीं। एक छोटे से लड़के ने पूछा, “मास्टर जी, क्या हम भी ऐसी दोस्ती कर सकते हैं?”
रवि ने हँसकर कहा, “हाँ, बिल्कुल! हर बच्चे की अपनी Bacchon ki Kahani हो सकती है। बस दोस्ती को दिल से निभाना।”
उस दिन से गाँव के बच्चे मेले में न सिर्फ मज़े करने जाते, बल्कि अपनी दोस्ती की कहानियाँ बनाने की कोशिश भी करते।
समय के साथ गाँव में बदलाव आने लगे। मेले में अब पहले जैसी सादगी नहीं रही थी। मशालों की जगह बिजली की रोशनी ने ले ली थी, और झूलों की जगह नई-नई मशीनें आ गई थीं। एक बार मेला कुछ दिनों तक बारिश की वजह से टल गया। गाँव वालों को लगा कि शायद इस बार मेला न हो। लेकिन बच्चों ने हार नहीं मानी। रवि, सोनू और रानी ने गाँव के बच्चों को इकट्ठा किया और एक छोटा सा मेला खुद लगाया। झूले छोटे थे, मिठाइयाँ कम थीं, लेकिन बच्चों की हँसी वैसी ही थी। सोनू ने कहा, “देखो, हमारी Bacchon ki Kahani ने इन बच्चों को भी जोड़ लिया।”
रवि ने जवाब दिया, “हाँ, ये मेला अब सिर्फ हमारा नहीं, सबका है।”
कई साल और बीत गए। एक बार मेला फिर से लगा। इस बार रवि, सोनू और रानी अपने-अपने बच्चों को लेकर मेले में आए। रवि का बेटा अनिल, सोनू की बेटी पूजा और रानी का बेटा मोहन—तीनों एक साथ झूले पर चढ़ गए। उनकी चीख-पुकार और हँसी सुनकर तीनों दोस्तों को अपनी पुरानी यादें ताज़ा हो गईं। रानी ने कहा, “देखो, अब इनकी Bacchon ki Kahani शुरू हो रही है।”
“हाँ, और हमारी कहानी इनमें जिंदा रहेगी,” सोनू ने जवाब दिया।
उस रात, जब मेला खत्म हुआ, तो तीनों परिवार झील के किनारे गए। बच्चों ने पत्थर फेंके, और बड़ों ने अपनी यादों को ताज़ा किया। अनिल ने पूछा, “पिताजी, आप लोग हर साल यहाँ क्यों आते हैं?”
रवि ने मुस्कुराते हुए कहा, “क्योंकि यहीं से हमारी दोस्ती की कहानी शुरू हुई थी।”
पूजा ने कहा, “तो क्या हम भी यहाँ वादा कर सकते हैं?”
“हाँ, क्यों नहीं?” सोनू ने हँसते हुए कहा।
तीनों बच्चों ने हाथ मिलाया और वादा किया कि वे भी हमेशा दोस्त रहेंगे। यह देखकर रवि, सोनू और रानी की आँखें भर आईं।
समय और आगे बढ़ा। रवि, सोनू और रानी अब बूढ़े हो चुके थे। उनके बच्चे बड़े हो गए थे और अपनी-अपनी जिंदगी में व्यस्त थे। लेकिन हर साल मेला आता, और वे तीनों फिर से झील के किनारे मिलते। एक बार मेला खत्म होने के बाद वे फिर से झील के किनारे बैठे थे। चारों तरफ सन्नाटा था, और झील का पानी चाँद की रोशनी में चमक रहा था। सोनू ने कहा, “हमने अपनी Bacchon ki Kahani को सचमुच जिंदा रखा।”
“हाँ, और अब ये कहानी हमारे बच्चों के बच्चों तक जाएगी,” रवि ने जवाब दिया।
रानी ने एक पुरानी तस्वीर निकाली—वही तस्वीर जो मेले में उनकी पहली मुलाकात के दिन खींची गई थी। तीनों उस तस्वीर को देखकर मुस्कुराए। उनकी आँखों में खुशी के आँसू थे।
उस रात, जब वे घर लौटे, तो गाँव में एक नया मेला शुरू होने की चर्चा थी। इस बार अनिल, पूजा और मोहन अपने बच्चों को लेकर मेले में गए। झूलों की चीख-पुकार फिर से गूँज रही थी, और नए बच्चे अपनी कहानियाँ बना रहे थे। रवि, सोनू और रानी अपने घर की छत से मेला देख रहे थे। रानी ने कहा, “हमारी Bacchon ki Kahani कभी खत्म नहीं होगी।”
“नहीं होगी,” सोनू ने कहा। “ये हर मेला में, हर झील के किनारे जिंदा रहेगी।”
रवि ने हँसते हुए कहा, “और हर बच्चे के दिल में।”
कई साल बाद, जब रवि, सोनू और रानी इस दुनिया में नहीं रहे, तब भी उनकी कहानी जिंदा थी। गाँव के बच्चे अब भी मेले में जाते और झील के किनारे उनकी कहानी सुनाते। एक बार एक छोटी लड़की ने अपने दोस्तों से कहा, “चलो, हम भी अपनी Bacchon ki Kahani बनाएँ।”
उसके दोस्तों ने हँसते हुए कहा, “हाँ, जैसे रवि, सोनू और रानी ने बनाई थी।”
उस दिन झील के किनारे नए बच्चों ने हाथ मिलाया और एक नया वादा किया। उनकी कहानी शुरू हुई, और पुरानी Bacchon ki Kahani उनके साथ चलती रही।
हर साल मेला आता, और गाँव के बच्चे उनकी कहानी सुनते। धीरे-धीरे यह Bacchon ki Kahani गाँव की लोककथाओं का हिस्सा बन गई। लोग कहते, “ये वो तीन दोस्त थे, जिन्होंने मेले में दोस्ती की, और झील के किनारे अपने वादे को अमर कर दिया।” उनकी कहानी बच्चों को सिखाती थी कि दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है, जो समय और हालात से परे होता है। मेले की रौनक और झील का सुकून—ये दोनों मिलकर एक ऐसी कहानी बुनते थे, जो कभी खत्म नहीं होती। यह कहानी पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रही, और हर नए मेले के साथ नई Bacchon ki Kahani जन्म लेती रही।